Stories from the Heart of the Himalayas

Discover authentic Pahadi culture, traditions, and the pure essence of mountain life

2025-07-152 minutes readFood

The Making of Pahadi Ghee

जानिए कैसे तैयार होता है उत्तराखंड का पारंपरिक Pahadi Ghee?

Char Dham Temple Complex in Uttarakhand Himalayas

जड़ी-बूटियों का पोषण: बद्री गाय और प्राकृतिक चराई

पहाड़ी घी की शुद्धता की कहानी किसी मशीन से नहीं, बल्कि पहाड़ों के ऊंचे बुग्यालों (meadows) से शुरू होती है। यहाँ की स्थानीय गायें, जिन्हें 'बद्री गाय' भी कहा जाता है, किसी शेड में बंधकर चारा नहीं खातीं। वे दिन भर खुले जंगलों और ढलानों पर चरती हैं, जहां वे विशेष औषधीय जड़ी-बूटियां और ताजी घास खाती हैं। इस प्राकृतिक आहार के कारण उनके दूध में 'A2 प्रोटीन' और औषधीय गुण आ जाते हैं। यही कारण है कि पहाड़ी घी का रंग, स्वाद और पोषण मैदानी इलाकों के घी से बिल्कुल अलग और श्रेष्ठ होता है।

असली तरीका: हाथ से बिलोना और धीमी आंच पर पकाना

असली पहाड़ी घी की जादुई खुशबू के पीछे कोई फैक्ट्री का फॉर्मूला नहीं, बल्कि सदियों पुराना पारंपरिक तरीका है जिसे 'बिलोना विधि' कहते हैं। बाज़ार में मिलने वाला ज्यादातर घी सीधे मलाई को मशीन में घुमाकर या गर्म करके बनाया जाता है, लेकिन पहाड़ में प्रक्रिया बिल्कुल अलग और बहुत सलीके वाली होती है। यहाँ सबसे पहले दूध को मिट्टी के बर्तनों में जमाकर दही बनाया जाता है। अगली सुबह, सूरज निकलने से पहले ही महिलाएं लकड़ी की रई (मथनी) से इस दही को हाथ से बिलोना शुरू कर देती हैं। यह मशीन का काम नहीं है; इसमें हाथों की एक खास लय और बहुत सारे धैर्य की जरूरत होती है। घंटों की मेहनत के बाद जब दही से मक्खन (जिसे स्थानीय भाषा में 'नूणी' कहते हैं) अलग होता है, तो वह मशीनी मक्खन के मुकाबले कहीं ज्यादा शुद्ध और पोषक तत्वों से भरपूर होता है।


लेकिन सफर यहीं खत्म नहीं होता। इस सफेद मक्खन को असली 'गोल्डन घी' बनाने के लिए उसे लोहे की कढ़ाही में लकड़ी के चूल्हे पर चढ़ाया जाता है। यहाँ सबसे बड़ा खेल 'धीमी आंच' का है। मक्खन को तेज आग पर फटाफट उबालने के बजाय, उसे मंद आंच पर घंटों तक धीरे-धीरे पकाया जाता है। इसे 'स्लो कुकिंग' कहते हैं। जैसे-जैसे मक्खन धीरे-धीरे पिघलता है, उसका पानी भाप बनकर उड़ जाता है और घी का रंग गहरा सुनहरा होने लगता है। इसी धीमी आंच की वजह से घी में वो खास 'दानेदार' (Granular) टेक्सचर आता है और एक ऐसी सोंधी खुशबू (Nutty Aroma) पैदा होती है जो किसी भी खाने का स्वाद बदल दे। यह तरीका सुनिश्चित करता है कि घी के विटामिन्स और गुड फैट्स जलकर खराब न हों, बल्कि सुरक्षित रहें।

पूजा से लेकर रसोई तक, शुद्धता का प्रतीक

भारतीय संस्कृति में घी सिर्फ भोजन का हिस्सा नहीं, बल्कि शुद्धता और पवित्रता का पर्याय है। उत्तराखंड को 'देवभूमि' कहा जाता है, और यहाँ के पहाड़ी घी (Pahadi Ghee) का स्थान हर घर और मंदिर में सर्वोच्च है। हमारे शास्त्रों और आयुर्वेद में गाय के घी को 'अमृत' समान माना गया है, लेकिन पहाड़ी गाय के घी की बात ही कुछ और है। चूंकि ये गायें जड़ी-बूटियों से भरे जंगलों में चरती हैं, इसलिए इनके दूध और घी को सात्विक और अत्यंत पवित्र माना जाता है।


चाहे घर में कोई मांगलिक कार्य हो, सत्यनारायण की कथा हो, या फिर दीवाली का दिया जलाना हो—पहाड़ी घी के बिना कोई भी अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता। हवन कुंड में जब यह शुद्ध घी डाला जाता है, तो उससे निकलने वाला धुआं न केवल वातावरण को शुद्ध करता है, बल्कि मन को भी शांति प्रदान करता है। स्थानीय त्योहारों में, जैसे कि 'फुलदेई' या 'हरेला', पारंपरिक पकवान बनाने के लिए इसी घी का उपयोग अनिवार्य है क्योंकि इसे देवताओं का भोजन (नैवेद्य) माना जाता है।

Simdi.in: वही पुराना स्वाद, अब नई पहचान के साथ

शहरों में 'देसी घी' के नाम पर अक्सर मिलावटी या मशीनों से बना घी मिलता है, जिसमें न वो खुशबू होती है और न वो गुण। Simdi.in ने इसी कमी को पूरा करने का बीड़ा उठाया है। हम घी किसी फैक्ट्री में नहीं बनाते, बल्कि सीधे उन पहाड़ी घरों से इकट्ठा करते हैं जो आज भी इसी बिलोना विधि का पालन करते हैं। Simdi का हर जार उसी परंपरा, मेहनत और शुद्धता को समेटे हुए है। जब आप Simdi से पहाड़ी घी ऑर्डर करते हैं, तो आप सीधे पहाड़ की उस खुशबू को अपने घर लाते हैं—बिना किसी केमिकल या प्रिजर्वेटिव के।
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